सतत आकलन प्रपत्र, समेकित आकलन प्रपत्र, Continuous Assessment and Consolidated Assessment for Primary Education
प्रारम्भिक शिक्षा सतत आकलन प्रपत्र 2020-21
प्रारम्भिक शिक्षा समेकित आकलन प्रपत्र 2020-21
Continuous Assessment and Consolidated Assessment
सतत मूल्यांकन एक ऐसा मूल्यांकन होता है। जिसमें शिक्षार्थियों को अध्ययन एवं अध्यापन करने के साथ-साथ, उनके अनुभव और व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों का लगातार मूल्यांकन किया जाता है। सतत मूल्यांकन में प्रत्येक इकाई के अध्ययन की समाप्ति के पश्चात ,विभिन्न उपकरणों के माध्यम से छात्रों का मूल्यांकन किया जाता है।
सतत आकलन का उद्देश्य बच्चों की प्रगति का आकलन उसके अपने पिछले प्रदर्शन के परिप्रेक्ष्य में करना है और उसके सशक्त पक्ष को उजागर करना है तथा कमियों की पहचान करना है।
समेंकित आकलन से संबंधी प्रस्तावित प्रक्रिया संबंधित मुख्य बिन्दु कुछ इस प्रकार है:
1. समेकित-आकलन मुख्य रूप से टर्म के प्रारंभ में शिक्षक द्वारा तय किए गए उद्देश्यों के सापेक्ष किया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत दोनों सम ूहों ‘समूह-1’ एवं ‘समूह-2’ के संदर्भ म ें तय किए गए लक्ष्यों म ें समग्रता बह ुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसलिए यह अपेक्षित है कि शिक्षक तय किए गए लक्ष्यों की समीक्षा करें आ ैर यह देखे कि क्या दा ेनों समूहों के लिए चिह्नित लक्ष्य समग्र ह ैं या नहीं। इसका अर्थ यह है कि चिह्नित लक्ष्य, कक्षा-स्तर के अनुसार प्रस्तावित सभी अधिगम क्षेत्रा ें से संबंधित ज्ञान, अवधारणाओं एवं कौशलों का आकलन करते हैं या नहीं।
2. समेकित आकलन को म ुख्य ता ैर पर अधिगम प्रगति/उपलब्धि के सावधिक आकलन के तौर पर देखा जाना चाहिए, जिसके अंतर्गत सतत रूप से चल रहे रचनात्मक आकलन के दा ैरान दर्ज आकलन को भी देखा जाना अपेक्षित ह ै। इसके द्वारा आकलन को और अधिक वस्तुनिष्ठ बनाया जा सकता ह ै।
3. आकलन के अंतर्गत वस्तुनिष्ठता के उच्चतर स्तर को प्राप्त करने ह ेतु यह आवश्यक है कि आकलन के किसी एक मात्र तरीके पर पूरी तरह आश्रित ना हुआ जाए। यानी कि अगर हम टर्म के अंत म ें लिए जाने वाले लिखित आकलन पर ही पूरी तरह आश्रित रहेंगे, तो ना ही हम पूरी तरह से वस्तुनिष्ठ आकलन कर पाएंगे आ ैर खास तौर पर उन अधिगम क्षेत्रा ें म ें का ेई वास्तविक आकलन नहीं कर पाएंगे, जिन्हें ठीक तरह से लिखित आकलन द्वारा देखा नहीं जा सकता है (जैसे भाषा में संदर्भ म ें सुनकर समझना, आत्मविश्वास एवं स्पष्टता से बोलना या पर्या वरण अध्ययन के संदर्भ म ें प्रश्न करना, प्रयोग एवं चर्चा इत्यादि)। इसी कारण से यह प्रस्तावित है कि समेकित-आकलन के दौरान एक से अधिक आकलन प्रक्रियाआ ें या स्रोता ें का होना आवश्यक है। इनके अंतर्गत म ुख्यतः (अ) लिखित आकलन, (ब) रचनात्मक-आकलन चैकलिस्ट, (स) पोर्टफा ेलियो, (द) आकलन गतिविधिया ँ एवं मौखिक आकलन शामिल किए जा सकते हैं।
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Ashwini Kuamr, Lecturer
Government Senior Secondary School, Deogarh (Rajsamand)
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